सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र नए परिसीमन के बाद दो जिलों में फैला हुआ है। इस संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं। देवरिया जिले की दो विधानसभा सीट भाटपाररानी और सलेमपुर है। तो बलिया की बेल्थरा, सिकंदरपुर व बांसडीह है। इनमें दो विधानसभाएं बेल्थरा व सलेमपुर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
साढ़े सोलह लाख मतदाता करेंगे प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र में 1661737 वोटर इस बार अपने सांसद का चुनाव करेंगे। इनमें से 904632 पुरुष मतदाता तो 756980 महिला मतदाता हैं।
जिला बनाने की सालों से उठ रही मांग सलेमपुर क्षेत्र काफी पिछड़े क्षेत्र में शुमार है। अंग्रेजों के जमाने में तहसील, रेलवे लाइन जैसी सुविधाएं मिलने के बाद भी यह क्षेत्र विकास से काफी अछूता रहा। खेती-किसानी ही यहां प्रमुख है। रोजी-रोजगार के लिए दूसरे शहरों पर निर्भरता है।
Read This also: ‘काला नमक’ चावल की लज्जत से पूरी दुनिया को आकर्षित करने वाले क्षेत्र में रूक-रूक कर चल रहा विकास महागठबंधन और कांग्रेस के बीच फंस गए भाजपा प्रत्याशी भारतीय जनता पार्टी ने सांसद रविंद्र कुशवाहा को मैदान में उतारा है। महागठबंधन की ओर से बसपा कोटे का यहां उम्मीदवार है। बसपा ने प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि कांग्रेस ने बनारस से सांसद रहे राजेश मिश्र को यहां से प्रत्याशी बनाया है। राजेश मिश्र देवरिया जिले के ही निवासी हैं। भाजपा प्रत्याशी को परंपरागत वोटों के अलावा सजातीय वोटों पर भरोसा है तो महागठबंधन के प्रत्याशी यादव-मुसलमान-दलित वोटों के अलावा सजातीय कुशवाहा मतों का समीकरण है जो वह साधने में लगे हुए हैं। कांग्रेस प्रत्याशी राजेश मिश्र ब्राह्मण वोटों के अलावा पिछड़ा वोट बैंक साधने में लगे हैं।
यह भी पढ़ेंः आखिर बीजेपी पूर्वांंचल की इन सीटों पर क्यों नहीं उतारती है महिला उम्मीदवार कांग्रेस और समाजवादियों का रहा यहां दबदबा सलेमपुर की जनता ने 1957 में अपना पहला सांसद चुना था। वह दौर कांग्रेस का था। कांग्रेस के विश्वनाथ राय यहां से सांसद बने। 1962 व 1967 में विश्वनाथ पांडेय कांग्रेस की टिकट पर चुने गए। 1971 में भी कांग्रेस ने विजयश्री हासिल किया लेकिन इस बार तारकेश्वर पांडेय यहां से सांसद चुने गए। जेपी आंदोलन के बाद पूरे देश में आई परिवर्तन की आंधी में यहां की जनता ने भी साथ दिया और भारतीय लोकदल के रामनरेश कुशवाहा यहां पहली बार सोशलिस्टों का परचम लहराया। लेकिन इसके बाद हुए दो चुनावों में कांग्रेस के रामनगीना मिश्र सांसद बने। 1989 में वीपी सिंह की लहर ने सलेमपुर को पूरी तरह समाजवादी बना दिया। 1989 में जनता दल के हरिकेवल प्रसाद चुनाव जीते। 1991 के रामलहर का भी प्रभाव यहां नहीं दिखा और हरिकेवल प्रसाद दुबारा जनता दल का परचम लहराया। 1996 में समाजवादी पार्टी के हरिवंश सहाय ने जीत हासिल की तो 1998 में जार्ज फर्नांडिज वाली समता पार्टी से हरिकेवल प्रसाद फिर यहां से सांसद बने। 1999 में पहली बार बसपा ने यहां से जीत हासिल की। बसपा के बब्बन राजभर यहां से जीतकर संसद में पहुंचे। लेकिन 2004 में सपा के टिकट पर हरिकेवल प्रसाद फिर से सांसद चुने गए। 2009 में बसपा ने दुबारा इस सीट पर जीत हासिल की। इस बार बसपा के रमाशंकर विद्यार्थी जीते।
Read this: ‘जूताकांड’ से हुई बदनाम हुई संतकबीर की धरती पर मुद्दे गौण, सभी साधने में लगे जातिगत समीकरण पहली बार मोदी लहर में खिला कमल, दुबारा रविंद्र पर ही भार सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र में पहली बार कमल 2014 में खिला। भाजपा ने समाजवादी सांसद हरिकेवल प्रसाद के पुत्र रविंद्र कुशवाहा को चुनाव लड़ाया। रविंद्र मोदी लहर में भाजपा का कमल खिलाने में सफल रहे। 2019 में भी भाजपा ने रविंद्र कुशवाहा पर ही दांव लगाया है।
Read this also: संत कबीरदास की धरती से तय होने जा रहा तीन पूर्व सांसदों समेत कई माननीयों का भविष्य कुशवाहा, राजभर व ब्राह्मण जातियों का रहा है वर्चस्व सलेमपुर लोकसभा सीट पर कुशवाहा, राजभर व ब्राह्मण जाति का वर्चस्व रहा है। लेकिन नए परिसीमन के बाद ब्राह्मण बहुल इलाका बरहज बांसगांव क्षेत्र का हिस्सा बन चुका है। जानकारों की मानें तो यह क्षेत्र अब कुशवाहा, राजभर, यादव, दलित व मुसलमान बहुल है। ब्राह्मण बिरादरी के लोग भी अच्छी खासी संख्या में हैं।
चुने गए सांसदों की बात करें तो आज तक यहां सात बार कुशवाहा जाति को प्रतिनिधित्व मिला है तो पांच बार ब्राह्मण, दो बार राजभर जाति को तो आजादी के बाद शुरूआती दिनों में भूमिहार जाति के कैंडिडेट ने बाजी मारी थी।